शिव का रौद्र रूप है वीरभद्र

 

शिव का रौद्र रूप है वीरभद्र 

वीरभद्र भगवान शिव के एक रौद्र रूप को दर्शाते हैं। वीरभद्र को भी भगवान शिव के अंशरूप माना जाता है।

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    वीरभद्र की कथा


    पुराणों में प्रस्तुत है। एक बार जब भगवान शिव और पार्वती माता ने अपने घर्मों के बीच में विश्राम कर रहे थे, तो उन्होंने वीरभद्र को अपने तेज़ से उत्पन्न किया। वीरभद्र तत्कालीन रूप से अत्यंत भयंकर और वीरता से भरपूर थे। वे शांति और न्याय के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत होते हैं।


    वीरभद्र को शंकर के विशेष सेवक और संरक्षक के रूप में माना जाता है। उनकी पूजा और आराधना भक्तों द्वारा भय और अशांति के नाश के लिए की जाती है।


    वीरभद्र के मंदिर भारत के विभिन्न हिस्सों में पाए जाते हैं और वहां उनकी पूजा विशेष धार्मिक आयोजनों के साथ की जाती है। यह रौद्रिक स्वरूप भगवान शिव का एक महत्वपूर्ण रूप है


    भगवान शिव हिन्दू धर्म के मुख्य देवताओं में से एक हैं। वे त्रिमूर्ति के एक पहलू भी हैं, जिनमें ब्रह्मा (सृष्टि), विष्णु (पालन और संरक्षण) और शिव (संहार और नष्टि) शामिल हैं। भगवान शिव को महादेव, शंकर, नीलकंठ, महेश, रुद्र, त्रिपुरारि, नटराज, आदि नामों से भी जाना जाता है।


    भगवान शिव का दर्शन उनकी उपासना, पूजा, और मेधातत्त्व के लिए खोज एवं साधना के लिए किया जाता है। उन्हें प्रशांत और ध्यानयोग के प्रतिपादक माना जाता हैं। शिव को भोलेनाथ के नाम से भी पुकारा जाता हैं, क्योंकि उन्हें आसानी से प्रसन्न होने वाले और विश्वासपूर्ण माना जाता हैं।


    शिव का वाहन नंदी (भैंस) है और उनका प्रतीक त्रिशूल (तीसरा नेत्र), डमरू (डमरू), जटा (बालों का गुच्छा), गंगा जल (जिसे शिवलिंग पर धारण किया जाता है) और सर्प है।


    भगवान शिव के अनेक प्रमुख मंदिर भारत और अन्य भागों में स्थित हैं


    यह अवतार तब हुआ था जब ब्रह्मा के पुत्र दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया लेकिन भगवान शिव को उसमें नहीं बुलाया। जबकि दक्ष की पुत्री सती का विवाह शिव से हुआ था। यज्ञ की बात ज्ञात होने पर सती ने भी वहां चलने को कहा लेकिन शिव ने बिना आमंत्रण के जाने से मना कर दिया। फिर भी सती जिद कर अकेली ही वहां चली गई। अपने पिता के घर जब उन्होंने शिव का और स्वयं का अपमान अनुभव किया तो उन्हें क्रोध भी हुआ और उन्होंने यज्ञवेदी में कूदकर अपनी देह त्याग दी। जब भगवान शिव को यह पता हुआ तो उन्होंने क्रोध में अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक पर्वत के ऊपर पटक दिया। उस जटा के पूर्वभाग से महाभंयकर वीरभद्र प्रगट हुए। 



    शास्त्रों में भी इसका उल्लेख है- 


     क्रुद्ध: सुदष्टष्ठपुट: स धूर्जटिर्जटां तडिद्व ह्लिस टोग्ररोचिषम्। 


     उत्कृत्य रुद्र: सहसोत्थितो हसन् गम्भीरनादो विससर्ज तां भुवि॥ 


     ततोऽतिकाय स्तनुवा स्पृशन्दिवं। - श्रीमद् भागवत -4/5/1 


     अर्थात सती के प्राण त्यागने से दु:खी भगवान शिव ने उग्र रूप धारण कर क्रोध में अपने होंठ चबाते हुए अपनी एक जटा उखाड़ ली, जो बिजली और आग की लपट के समान दीप्त हो रही थी। सहसा खड़े होकर उन्होंने गंभीर अठ्ठाहस के साथ जटा को पृथ्वी पर पटक दिया। इसी से महाभयंकर वीरभद्र प्रगट हुए। 


     भगवान शिव के वीरभद्र अवतार का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। यह अवतार हमें संदेश देता है कि शक्ति का प्रयोग वहीं करें जहां उसका सदुपयोग हो। वीरों के दो वर्ग होते हैं- भद्र एवं अभद्र वीर।


     राम, अर्जुन और भीम वीर थे। रावण, दुर्योधन और कर्ण भी वीर थे लेकिन पहला भद्र (सभ्य) वीर वर्ग और दूसरा अभद्र (असभ्य) वीर वर्ग है। सभ्य वीरों का काम होता है हमेशा धर्म के पथ पर चलना तथा नि:सहायों की सहायता करना। वहीं असभ्य वीर वर्ग सदैव अधर्म के मार्ग पर चलते हैं तथा नि:शक्तों को परेशान करते हैं। भद्र का अर्थ होता है कल्याणकारी। अत: वीरता के साथ भद्रता की अनिवार्यता इस अवतार से प्रतिपादित होती है।"


    शिवलिंग


    शिवलिंग शिव की प्रतिमा का प्रमुख प्रतीक है। इसे भी शिवलिंगम् या लिंगम् के नाम से जाना जाता है। शिवलिंग का आकार स्वयंप्रकाश होता है और यह एक पुरातन पूजा वस्त्र से ढ़का हुआ होता है जिसे प्रतिपादित किया जाता है।


    शिवलिंग त्रिमूर्ति के भगवान शिव के संकेत के रूप में माना जाता है। इसका प्रतिष्ठान शिव के मंदिरों में किया जाता है और भक्तों द्वारा पूजा और आराधना की जाती है। यह प्रतीक शक्ति, उपासना, और मोक्ष के प्रतीक के रूप में भी प्रस्तुत होता है।


    शिवलिंग का रूप एक स्थूल प्रतीति से बाहर होता है और इसे निर्दिष्ट मूर्तिमान नहीं माना जाता है। इसे निर्मित करने के लिए पवित्र शिला, पारद, नग, जड़ा, पाथर, जल, पीसे हुए पत्थर, धातु, राजत, सोना, चांदी, जहाजी दातून, ब्रह्मकापाल, लोहा, पीतल, पापिर, चिनी मिट्टी, बेलगम, मणि आदि का प्रयोग किया जा सकता है।


    शिवलिंग की पूजा करते समय, जल, धूप, दीप, बिल्वपत्र प्रयोग किया जाता है



    भगवान शिव के प्रमुख मंदिरों की कई विभिन्न स्थानों पर भारत में स्थित हैं। यहां कुछ प्रमुख मंदिरों का उल्लेख किया गया है:


    1) केदारनाथ मंदिर, उत्तराखंड: केदारनाथ मंदिर हिमालय की पहाड़ियों में स्थित है और यह शिव के अद्वैत स्वरूप के रूप में माना जाता है। यह चार धामों में से एक है और चार धाम यात्रा का महत्वपूर्ण स्थल है।


    2) सोमनाथ मंदिर, गुजरात: सोमनाथ मंदिर गुजरात के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल सोमनाथ नगर में स्थित है। यह मंदिर शिव के ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध है।


    3) महाकालेश्वर मंदिर, मध्य प्रदेश: महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन, मध्य प्रदेश में स्थित है और यह भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के रूप में माना जाता है।


    4) बृहदीश्वर मंदिर, तमिलनाडु: बृहदीश्वर मंदिर तमिलनाडु के तिरुवनंतपुरम में स्थित है और यह शिव के एक प्रमुख मंदिर है।


    केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित है। यह मंदिर हिमालय की पहाड़ियों में केदारनाथ नगर के पास स्थित है। केदारनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और यह चार धामों में से एक है, जो हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों में से एक हैं।केदारनाथ मंदिर उच्च पहाड़ों में स्थित है और यह पहाड़ी देवभूमि कहलाता है। मंदिर का निर्माण गर्मी के मौसम में ही किया जाता है, और सर्दियों में मंदिर अपने द्वार लोगों के लिए बंद रहता है। मंदिर की संरचना उच्च शिखरों, बर्फ से ढके आकर्षक परिदृश्य, नदी के किनारे, वनों और हिमालयी प्राकृतिक सौंदर्य के बीच स्थित है।केदारनाथ मंदिर को शंकराचार्य आदिगुरु शंकराचार्य ने संस्थापित किया था। मंदिर का मुख्य गोपुरम गर्भगृह के ऊपर बना है और इसमें विभिन्न देवताओं और धार्मिक चित्रों की सुंदर विभूतियाँ हैं।