भगवान शंकर के पूर्णरूप काल भैरव
काल भैरव हिन्दू धर्म में एक प्रमुख देवता हैं जिन्हें शिव के एक रूप के रूप में पूजा जाता है। वे अपरिमित शक्ति और अद्वितीय शक्तिशाली होते हैं जिन्हें मान्यता है कि वे समय के भगवान हैं और सभी समय की रक्षा करते हैं।
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काल भैरव-Indiamoney24 |
शास्त्रों और पुराणों के अनुसार, काल भैरव को विजय प्राप्ति, संरक्षण, शत्रुओं का नाश, धर्म की रक्षा, और संसार में न्याय की स्थापना करने की क्षमता का प्रतीक माना जाता है। काल भैरव की पूजा का विशेष महत्व है और कई लोग उन्हें अपनी भक्ति और आराधना का केंद्र बनाते हैं।
भगवान शंकर के पूर्ण रूप में भैरव एक महत्वपूर्ण अवतार हैं। भैरव भगवान शिव के एक रूप के रूप में जाने जाते हैं और वे काल भैरव के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। काल भैरव एक प्रकार का अभिचार रूप हैं, जो काल और नष्ट का प्रतीक हैं।
कथाओं और पुराणों के अनुसार, जब भगवान शिव ने अपनी शक्ति की तेजस्विनी रूप से अद्यात्मिक विद्या को ज्ञानी महर्षि बृहस्पति को सिखाई थी, तब उनके शरीर का एक छोटा सा अंश अलग हो गया और वह भैरव रूप धारण कर लिया। भैरव को शिव की उपासना का प्रतिपादक माना जाता है, जहां वह उनकी विनाशकारी शक्ति को प्रतिष्ठित करते हैं।
भैरव के रूप में भगवान शंकर को अन्य देवी-देवताओं के साथ विभिन्न अवसरों पर पूजा जाता है।
एक बार सुमेरु पर्वत पर बैठे हुए ब्रम्हाजी के पास जाकर देवताओं ने उनसे अविनाशी तत्व बताने का अनुरोध किया | शिवजी की माया से मोहित ब्रह्माजी उस तत्व को न जानते हुए भी इस प्रकार कहने लगे - मैं ही इस संसार को उत्पन्न करने वाला स्वयंभू, अजन्मा, एक मात्र ईश्वर , अनादी भक्ति, ब्रह्म घोर निरंजन आत्मा हूँ| मैं ही प्रवृति उर निवृति का मूलाधार , सर्वलीन पूर्ण ब्रह्म हूँ | ब्रह्मा जी ऐसा की पर मुनि मंडली में विद्यमान विष्णु जी ने उन्हें समझाते हुए कहा की मेरी आज्ञा से तो तुम सृष्टी के रचियता बने हो, मेरा अनादर करके तुम अपने प्रभुत्व की बात कैसे कर रहे हो ?
इस प्रकार ब्रह्मा और विष्णु अपना-अपना प्रभुत्व स्थापित करने लगे और अपने पक्ष के समर्थन में शास्त्र वाक्य उद्घृत करने लगे| अंततः वेदों से पूछने का निर्णय हुआ तो स्वरुप धारण करके आये चारों वेदों ने क्रमशः अपना मत६ इस प्रकार प्रकट किया -
- ऋग्वेद- जिसके भीतर समस्त भूत निहित हैं तथा जिससे सब कुछ प्रवत्त होता है और जिसे परमात्व कहा जाता है, वह एक रूद्र रूप ही है |
- यजुर्वेद- जिसके द्वारा हम वेद भी प्रमाणित होते हैं तथा जो ईश्वर के संपूर्ण यज्ञों तथा योगों से भजन किया जाता है, सबका दृष्टा वह एक शिव ही हैं|
- सामवेद- जो समस्त संसारी जनों को भरमाता है, जिसे योगी जन ढूँढ़ते हैं और जिसकी भांति से सारा संसार प्रकाशित होता है, वे एक त्र्यम्बक शिवजी ही हैं |
- अथर्ववेद- जिसकी भक्ति से साक्षात्कार होता है और जो सब या सुख - दुःख अतीत अनादी ब्रम्ह हैं, वे केवल एक शंकर जी ही हैं|
काल भैरव का दर्शन स्थिरता, न्याय और विनाश का प्रतीक माना जाता है। वे विष्णु और लक्ष्मी के अपराधों का पालन करते हैं और अधर्म, अन्याय और अनुचित कार्यों का नाश करते हैं। उन्हें अन्य देवी-देवताओं के रक्षक और काल भैरव के भक्तों के रक्षक के रूप में माना जाता है।
विष्णु ने वेदों के इस कथन को प्रताप बताते हुए नित्य शिवा से रमण करने वाले, दिगंबर पीतवर्ण धूलि धूसरित प्रेम नाथ, कुवेटा धारी, सर्वा वेष्टित, वृपन वाही, निःसंग,शिवजी को पर ब्रम्ह मानने से इनकार कर दिया| ब्रम्हा-विष्णु विवाद को सुनकर ओंकार ने शिवजी की ज्योति, नित्य और सनातन परब्रम्ह बताया परन्तु फिर भी शिव माया से मोहित ब्रम्हा विष्णु की बुद्धि नहीं बदली |
उस समय उन दोनों के मध्य आदि अंत रहित एक ऐसी विशाल ज्योति प्रकट हुई की उससे ब्रम्हा का पंचम सिर जलने लगा| इतने में त्रिशूलधारी नील-लोहित शिव वहां प्रकट हुए तो अज्ञानतावश ब्रम्हा उन्हें अपना पुत्र समझकर अपनी शरण में आने को कहने लगे|
ब्रम्हा की संपूर्ण बातें सुनकर शिवजी अत्यंत क्रुद्ध हुए और उन्होंने तत्काल भैरव को प्रकट कर उससे ब्रम्हा पर शासन करने का आदेश दिया| आज्ञा का पालन करते हुए भैरव ने अपनी बायीं ऊँगली के नखाग्र से ब्रम्हाजी का पंचम सिर काट डाला| भयभीत ब्रम्हा शत रुद्री का पाठ करते हुए शिवजी के शरण हुए|ब्रम्हा और विष्णु दोनों को सत्य की प्रतीति हो गयी और वे दोनों शिवजी की महिमा का गान करने लगे| यह देखकर शिवजी शांत हुए और उन दोनों को अभयदान दिया|
इसके उपरान्त शिवजी ने उसके भीषण होने के कारण भैरव और काल को भी भयभीत करने वाला होने के कारण काल भैरव तथा भक्तों के पापों को तत्काल नष्ट करने वाला होने के कारण पाप भक्षक नाम देकर उसे काशीपुरी का अधिपति बना दिया | फिर कहा की भैरव तुम इन ब्रम्हा विष्णु को मानते हुए ब्रम्हा के कपाल को धारण करके इसी के आश्रय से भिक्षा वृति करते हुए वाराणसी में चले जाओ | वहां उस नगरी के प्रभाव से तुम ब्रम्ह हत्या के पाप से मुक्त हो जाओगे |
शिवजी की आज्ञा से भैरव जी हाथ में कपाल लेकर ज्योंही काशी की ओर चले, ब्रम्ह हत्या उनके पीछे पीछे हो चली| विष्णु जी ने उनकी स्तुति करते हुए उनसे अपने को उनकी माया से मोहित न होने का वरदान माँगा | विष्णु जी ने ब्रम्ह हत्या के भैरव जी के पीछा करने की माया पूछना चाही तो ब्रम्ह हत्या ने बताया की वह तो अपने आप को पवित्र और मुक्त होने के लिए भैरव का अनुसरण कर रही है |
भैरव जी ज्यों ही काशी पहुंचे त्यों ही उनके हाथ से चिमटा और कपाल छूटकर पृथ्वी पर गिर गया और तब से उस स्थान का नाम कपालमोचन तीर्थ पड़ गया | इस तीर्थ मैं जाकर सविधि पिंडदान और देव-पितृ-तर्पण करने से मनुष्य ब्रम्ह हत्या के पाप से निवृत हो जाता है.
काल भैरव का दर्शन विशेष रूप से शक्तिपीठों में किया जाता है, जहां उन्हें विशेष पूजा और अर्चना की जाती है। भारत में काल भैरव के कई प्रमुख मंदिर हैं, जैसे कि काल भैरव मंदिर, वाराणसी, काल भैरव मंदिर, उज्जैन, और काल भैरव मंदिर। भगवान शंकर ने भैरव रूप धारण किया था। भैरव भगवान शिव के एक अवतार हैं और वे काल भैरव के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। भगवान शिव के अंशरूप में भैरव विशेष रूप से वीरभद्र नामक शक्तिशाली और भयंकर स्वरूप को दर्शाते हैं।